स्वतंत्रता दिवस पर संदेश
अन्न स्वराज .2020
भूखकुपोषणबीमारी और किसानों की आत्महत्या से मुक्त भारत के लिए एक एजेंडा
-डावंदना शिवा


15 अगस्त 1947 को आखिरकार भारत ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया। गांधी-सुभाष सहितहजारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आंदोलनकारियों के अथाह प्रयासों से हम स्वतंत्र हो सके। सरदार भगतसिंहचंद्र शेखर आजाद जैसे सैकड़ों वीर इस माटी के लिए कुर्बान हो गए। आज हम स्वतंत्रता दिवसकी 69वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। यह पावन पर्व चिंतन और मनन का भी है कि इतने वर्ष बीतने पर भीदेश में गरीबीभुखमरीकुपोषण और किसानों की आत्महत्याओं जैसी घटनाएं लगातार बढ़ती जारही हैं। समूचा देश मिलावटी खाद्यान्न और खतरनाक रसायनों के साथ ही जी.एमफसलों सेे युक्तभोजन की चपेट में  रहा हैपरिणाम स्वरूप देश पर कई बीमारियों के बादल लहरा रहे हैं। आएं,अपने अमर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथसपथ लें कि हम रसायन और जी.एम. रहित तथाजैविक-कृषि के माध्यम से देश की अन्न सम्पन्नता के लिए अपना योगदान देंगे। हम देश औरउसके अन्नदाता किसान की आर्थिक-स्वतंत्रता के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!

हमारे पूर्वजों ने सिखाया है कि भोजन उत्पन्न कर प्राणियों की रक्षा करना संसार सर्वश्रेष्ठ धर्म है।हमारे संविधान का अनुच्छेद -21 भी हमें जीवन जीने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। भारत कीमाटी विश्व की सार्वाधिक उर्वरता -सम्पन्न है। जैव-विविधता के मामले में भी हमारा देश सर्वाधिकधनी है। हमारे उपनिषद भी अन्नं बहु-कुर्विता यानी खूब अन्न उत्पन्न कर खुशहाल बनने का संदेशदेते हैंफिर भी ऐसे प्रबुद्ध एवं विज्ञान-सम्पन्न देश के लोग भुखमरीकुपोषण के शिकार होते हैंऔर अन्नदाता किसान आत्महत्या के लिए मजबूर होता है। आइयेइन विडम्बनाओं को जड़ सेमिटाने वाले अभियान अन्न स्वराज-2020 की सफलता के लिए कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढें।

भारत भूमि में विश्व की सार्वाधिक उर्वरा-शक्ति है। अधिकतर पश्चिमी औद्योगिक देशों की तुलना (एकफसल प्रतिवर्षमें हम भारत भूमि में एक वर्ष में चार फसल उगा सकते हैं। जलवायु की विविधताके साथ ही प्रबुद्ध किसानों तथा प्रजनकों ने हमें दो-लाख धान सहित गेहूंआम और केले की हजारोंकिस्में प्रदान की हैं। सार्वाधिक जैव-विविधता के चलते हम दुनिया के सर्वाधिक धनी देश हैं। इसकेबावजूद हम भूख और कुपोषण के शिकार हो रहे हैं और हमारे किसान आत्महत्या करने पर मजबूरहैं।

हमारी कृषि-विरासत

वर्ष 2015 को संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय मिट्टी वर्ष घोषित किया है। इस अवसर पर हमें उनभारतीय किसानों को धन्यवाद देना चाहिएजिन्होंने पिछले दश-हजार वर्षों से कृषि-अभ्यासों केजरिए इस माटी की देखभाल की है। सर अलबर्ट हावर्ड को 1905 में भारतीय खेती में रसायनों केप्रयोग हेतु भारत भेजा गया। सर अलबर्ट भारत-भूमि की उर्वरता और खेती के सम्बंध में यहां केकिसानों के ज्ञान से हतप्रभ (दंगरह गए। उन्होंने अपने प्राध्यापक को भारतीय किसानों और उनकेकृषि-पारस्थितिकीय ज्ञान के बारे में लिखा और निवेदन किया कि उनके देश वासियों को भारतीयकिसानों से जैविक खेती सीखने की आवश्यकता है।

हमारी विडम्बना

 हम एक समृद्ध कृषि-विरासत के बावजूद भोजनपोषण और कृषि-प्रणाली से सम्बधित त्रिकोणीयआपातकालीन स्थिति को झेल रहे हैं। ऐसी स्थिति के लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं। 21वीं सदी केइस आधुनिक युग में भी हमारी जनता भूख और कुपोषण का दंश झेल रही है। डेक्कन हेराल्ड तथाललिता एस.रंगारी के अनुसार गोंडिया आदिवासी क्षेत्र में एक दलित विधवा की दो बच्चों सहितभुखमरी की वजह से मृत्यु हो गई। इस प्रकरण के तहत मुम्बई उच्च-न्यायालयनागपुर बेंच केन्यायमूर्ति भूषण गवई और न्यायमूर्ति इंदु जैन ने महाराष्ट्र सरकार का जवाब तलब किया। यदिभारत भूखकुपोषण और पुरानी बीमारियों से  जूझ रहा होता तो आज समृद्ध एवं सम्पन्न देशहोता।

 दूसरी विडम्बना यह है कि जो भोजन उत्पादक और छोटे किसान एक अरब से भी अधिक लोगों कोभोजन मुहैय्या कराने की क्षमता रखते हैंउन्हें काॅर्पोरेट जगत के लाभ के लिए बनाई गई कृषि एवंव्यापार नीति मौत के मुंह में धकेल रही है। ज्ञात हो कि 1995 से अब तक (जब से विश्व व्यापारसंगठन ने कार्पोरेट जगत के पक्ष में कृषि से सम्बंधित वैश्विक नियम लागू किए गएभारत में तीनलाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

 तीसरी विडम्बना यह कि जिन लोगों को भोजन मिल भी रहा हैउनकी थाली में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में जहर (कीटनाशक  रसायनिक खादों के कारणपरोसा जा रहा है। इस मिलावटीऔर विषाक्त भोजन के कारण देश मधुमेहकैंसरउच्च-रक्तचापबांझपन और हृदय रोग जैसीमहामारियों की चपेट में  रहा है।

हमारा स्वास्थ्य-

हाल ही में घटित ’मैगी नूडल कांड’ कांड के बारे में अधिक विस्तार बताने की जरूरत नहीं है। यह तोभारतीय भोजन में ’जंक फूड’ के तेजी से बढ़ते हुए संक्रमण का उदाहरण है। स्मरण रहे कि हमजैसा खाते हैंवैसे ही बन जाते हैं। हम जहरीले रसायनों से भरा भोजन करेंगे तो इसकी भरपाई मेंहमें स्वास्थ्य से हाथ धोना ही पडे़गा।

देश में पिछले पांच वर्षों के दौरान कैंसर के रोगों में 30 प्रतिशत बढोत्तरी आंकी गई।़ एक आंकलनके अनुसार भारत में 180 लाख लोग कैंसर से प्रभावित हंै। कैंसर पीडि़त प्रत्येक व्यक्ति के उपचारपर 10 लाख रूपये तक का खर्च आता है। यदि इस संख्या को 300 अरब डालर से गुणा किया जाएतो कोई 18 लाख करोड़ का खर्च बैठता है।

नवधान्य द्वारा प्रकाशित एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट ’भोजन में जहर’ के अनुसार स्तन-कैंसर से पीडि़तमहिलाओं के रक्त में पीसीबी (पाॅली क्लोरिनेटेड बाइफिनाइल्स), डी.डी. तथा डी.डी.टी जैसे रसायनबड़ी मात्रा में पाये गए। स्वास्थ्य सम्बंधी एक अन्य रिपोर्ट में 51 खाद्य वस्तुओं मंे कीटनाशक होनेकी बात सामने आयी है। कीटनाशक तथा जी.एम.. (आनुवांशिक रूप से संशोधित जीवोंसेपरागकर्ता कीट (जैसे मधुमक्खंी और तितलियांनष्ट हो रहे हैं। जी.एम.तथा कीटनाशकहमारी जैव-पारस्थितिकी के लिए खतरे की घंटी हैं। वहींजैविक-भोजन मानव तथा मृदा स्वास्थ्यको इन विषैले रसायनों से मुक्त रखता है।

डावंदना शिवा द्वारा पिछले तीन दशकों में किए गये शोध का अनुभव यही बताता है कि उपरोक्ततीनों विडम्बनाओं का एक दूसरे से घनिष्ठ अंर्तसम्बंध है। तथाकथित हरित-क्रांतिऔद्योगिक-कृषिऔर रसायनिक-खेती इन विडम्बनाओं के मूल में हैं। ये विडम्बनाएं पारस्थितिकआर्थिक औरसामाजिक क्षेत्र में गैर-टिकाऊ माॅडल के फलस्वरूप हमारे सामने त्रासदी के रूप में खड़ी हैं।

सरासर साजिश-

हमारी स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपया जैसी है। हम कृषि उत्पादन के पश्चात जितनाकमाते हैंवह हमारी खेती में लगने वाली ऊर्जातेल-पानी और रसायनिक खादों पर लगने वालीलागत की अपेक्षा  के बराबर है। रासायनिक खादों से युक्त अप्राकृतिक और खर्चीली खेती करना तो किसानों की हैसियत में है और ना ही सरकार के। हांयह अलग बात है कि सरकारें लोभवशदिखावे की सब्सिडी देने का प्रपंच करती हंैजबकि हमें ज्ञात है कि उनका यह प्रपंच किसी के हितमें नहींबल्कि किसानों को कर्ज के बोझ तले झोंकने की साजिश मात्र है।

हरित-क्रांति के फलस्वरूप खेती में रसायनों के एकाधिकार ने शाकाहारियों के लिए पोषण हेतु कृषि-प्रणाली के उस मिश्रित स्वरूप को नष्ट कर दियाजिसमें हम दलहनी और तिलहनी को बखूबी स्थानदेते थे। परिणामतः आज हम उड़दमूंगअरहरचनागहथ और नौरंगी की जगह पीली मटर कीदाल को तथा तिल एवं सरसों को उगाने की जगह जी.एम.-सोया तेलपाम-तेल और बी.टी-कपास के तेल का आयात कर रहे हैं। अब तो जी.एम.-सरसों को लाने तक की बात की जा रही है।यदि हम पोषण सम्पन्न फसलों की बुवाई बंद कर देंगेतो कुपोषण स्वाभाविक रूप से आयेगा ही।यदि हम जहरीले रसायनों युक्त फसलों को उगायेंगे तो निश्चित ही विषाक्त और बीमारियों को हमारेभोजन में  चाहते हुए भी स्थान मिलेगा। नवधान्य द्वारा वर्तमान में किये गए एक सर्वे में पायागया कि 8,000 की जनसंख्या वाले एक अकेले गांव में 100 मरीज अलग-अलग तरह के कैंसर सेपीडि़त हैं। खेती पर रसायनों का एकाधिकार किसानों को कर्ज और मौत के मुंह में ढकेलने तथाउनके नोनिहालों को कुपोषण और विभिन्न तरह की बीमारियों के मुंह में धकेल रहा है।

बात पश्चिमी उत्तर-प्रदेश की

2015 में रबी के मौसम में हुई बेमौसम बारिश ने उत्तरी भारत में रबी की फसल को पूरी तरह से नष्टकर दिया। जिसमें उत्तर प्रदेशहरियाणापंजाब को बहुत बड़ा नुकसान हुआ। इस मौसमी झंझावातसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मथुरा और मेरठ को बुरी तरह से प्रभावित हुए। ज्ञात हो कि इन जनपदों मेंसरकार द्वारा उर्वरकों के अनियमित वितरण के चलते कुछ उर्वरक विक्रेताओं को अतिशय महंगे दामोंपर रसायनिक खादों को बेचने का अवसर मिल गया और उन्होंने किसानों के धन पर खूब सेंधलगाई। इस तरह से किसानों का कर्जा और भी बढ़ जाता है। इसके चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश केमेरठबागपत,  हापुड़बुलंदशहरमुजफर नगरशामलीसहारनपुर तथा बिजनौर के किसानों पर2015 में बैंक का कुल कर्जा 17,616.45 करोड़ रूपया हो गया। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जिन क्षेत्रों मेंमिश्रित खेती की अपेक्षा एकल कृषि-प्रणाली अपनाई गईवहां असमय बारिश से किसानों का ज्यादानुकसान हुआ जबकि मिश्रित खेती वाले क्षेत्रों में कई फसलों पर इस बारिश का कम प्रभाव पड़ा औरकिसान हताशा के दौर से बच निकलने में सफल रहे। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जिन किसानों नेरासायनिक खेती पर आधारित आलू और गेहूं को अपनाया बेमौसम बारिश ने उनके खेतों को दाने-दाने के लिए मोहताज कर दिया और इन फसलों के साथ ही किसानों के द्वारा बैंक से लिया गया पैसाभी डूब गया।

नवधान्य की मुहिम

रासायनिक खेती मंहगे आदानो (रासायनिक खादकीटनाश तथा हाइब्रिड बीजपर निर्भर करती है।ऐसी खेती किसान को कर्ज के बोझ तले घसीट डालती है। ये रसायन कई तरह की गैसों कोउत्सर्जित करते हैंइन गैसों मेें हरित-गृह गैसों का आधिक्य होता हैजोकि मौसम परिवर्तन केलिए लगभग 40 प्रतिशत योगदान देती हैं। जब तक हम रसायनों और जैव-नाशकों के साथ महंगेबीजों के उपयोग बंद नहीं करेंगेतबतक कर्ज और उसके दबाव से उत्पन्न होने वाली स्थिति यानीआत्महत्याओं पर विराम लगाना कठिन है। ज्ञात हो कि जैविक खेती ही एक ऐसी युक्ति हैजिससेसभी लोग स्वस्थ रहेंगे और किसान कर्ज तथा आत्महत्या के कुचक्र से बाहर  सकेंगे। नवधान्यद्वारा तीन दशकों का कार्य यह दर्शाता है कि यदि जैव-विविधता और जैविक-खेती के आधार प्रतिएकड़ का पोषण प्रबंधन (स्वास्थ प्रति एकड़़पर किया जा जाये तो हमारे खेतों से भरपूर एवं स्वस्थउत्पादन प्राप्त हो सकेगा।

किसान आत्महत्याभूखकुपोषणरोग एवं महामारी के निवारण के साथ स्वस्थ एवं पोषणसम्पन्न भारत की नंीव रखने के लिए नवधान्य एक पांच वर्षीय ’अन्न-स्वराज (अन्न-सम्प्रभुता)अभियान-2020’ प्रारम्भ करने जा रहा हैताकि यहां के नोनिहाल भुखमरी और कुपोषण के दंश सेबच सकें और किसान आत्महत्या जैसी विभीत्सिका से मुक्त हो सकें।

हमारा एजेण्डाः अन्न स्वराज 2020

स्वस्थभरपूरमिलावट रहित और पोषणयुक्त भोजन के माध्यम से समग्र कृषि-क्रांति लाने केलिए हम अन्न-स्वराज ऐजेण्डा प्रस्तुत करते हैं। नवधान्य द्वारा निर्मित इस ऐजेण्डे का उद्देश्य देश मेंखुशहाली की गौरवशाली परम्परा को स्थापित करना हैजिसमें सभी नागरिकों के साथ ही स्थानीय,राज्य-स्तरीय और राष्ट्रीय-स्तर की सरकार की भागीदारी होना परम आवश्यक है।

हमंे भोजन की बर्बादीभोजन में मिलावट तथा भोजन के साथ कंपनियों की वस्तु जैसा बर्तावकरना बंद कर देना चाहिए। हमारा संविधान का अनुच्छेद-21 सभी नागरिकों को जीवन-जीने कीस्वतंत्रता का अधिकार देता है। भोजन जीवन का आधार है यानी प्रत्येक व्यक्ति को भोजन काअधिकार प्राप्त है। राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा कानून इस दिशा में एक अच्छा कदम है और इसको पूरीप्रतिबद्धता के साथ लागू किया जाना चाहिए। हमारी संस्कृति हमें ’अन्न ब्रह्म’ (अन्न ही सब कुछ हैयानी अन्न है तो हम हैंका ज्ञान देती है। भोजन के साथ खिलवाड़ करना जीवन के साथ खिलवाड़करना जैसा है।

1.            माटी तथा मानव के उत्तम स्वास्थ्य तथा किसानों की समृद्धि के लिए रसायन रहितजैविक-खेती का को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। जैविक खेती से जहां हम जहरीले तथा मिलावटीभोजन और कुपोषण से बच सकेंगेवहीं इस खेती में रासायनिक खादोंकीट नाशकों तथा महंगेबीज के कारण किसान कर्ज की स्थिति से बच सकेंगे।

2.            रसायनिक खेती के एकाधिकारलम्बी दूरी के भोजन-परिवहनभोजन का आयात,बिचोलियांे तथा निगमों के द्वारा किसानों और उपभोगताओं के शोषण से बचने के लिए अन्न-स्वराज के भोजन-परिक्षेत्र के माध्यम से किसान एवं उपभोक्ताओं के सम्बंधों को मजबूत करने कीआवश्यकता है।

3.            इन भोजन-परिक्षेत्रों से जहां हमें ताजास्वस्थ एवं मिलावट रहित भोजन मिलेगावहींइससे हमारी कृषि-विविधता को बढ़ावा मिलेगा और इस धरती की जैव-विविधता संरक्षित होसकेगी।

4.            वर्तमान में चल रहा मध्यान का भोजनपी.डी.एस.(सार्वजनिक वितरण प्रणाली),आई.सी.डी.एस.(समन्वयित बाल विकास सेवाको सुधारने की जरूरत हैजिसमें जनता के कर(टैक्सका करोंड़ों रूपया व्यय होता है। हमें कर की इस मद को स्वस्थपोषणयुक्तस्वच्छ एवंसुरक्षित भोजन हेतु क्रय-शक्ति में बदलने की आवश्यकता है।

5.            आवश्यकता है कि हम गांव तथा शहर के प्रत्येक स्थानों यथाखेतोंसमुदायिकक्षेत्रांेस्कूल तथा घर-आंगन की छतोंबालकाॅलोनियोंकीचन-गार्डन तथा जहां तक सम्भव होप्रत्येक खाली स्थानों में उद्यान लगाएं। ये ’आशा के उद्यान’ भारत को कुपोषण से मुक्त तथा पोषण-सम्पन्न बनायेंगे। हमें गांधी जी के अधिक अन्न उपजाओ और लाल बहादुर शास्त्री के भोजन हेतुबागान लगाओ के संदेश से प्रेरणा लेने की जरूरत है।

भोजन तथा पोषण की आपात स्थिति से निपटने के लिए अगस्त 2015 में नवधान्य ’अन्न-सम्पन्न नगर’ (फूड स्मार्ट सिटीअभियान की शरूआत करने जा रहा है। ये भोजन सम्पन्न नगरअपने नागरिकों को सीधे किसानों के अन्न-क्षेत्र से जोडे़ंगे ताकि उन्हें शुद्धस्वस्थताजास्थानीयएवं सही-दरों पर भोजन मिले तथा किसानों को अपने उत्पाद के लिए वांछित दाम और सही बाजारमिल सके। यदि हम अन्न-स्वराज 2020 के इस अभियान से प्रतिबद्ध होकर जुुड़ते हैंतो वह समयदूर नहींजब भारत अन्न तथा पोषण-सम्पन्न होकर खुशहाल नागरिकों का देश कहलाएगा। आइए,तैतरेय पुराण के उस सूत्र को साकार करें जिसमें लिखा हैअन्नं बहु-कुर्विता यानी अधिकाधिकअन्न उत्पन्न करके सम्पन्न बनो। सभी को भोजन मुहैय्या कराना इस संसार का सर्वश्रेष्ठ धर्म है।आइएइस दिशा में मिलकर कदम बढ़ाएं!
Pin It

About Navdanya

Navdanya means “nine seeds” (symbolizing protection of biological and cultural diversity) and also the “new gift” (for seed as commons, based on the right to save and share seeds In today’s context of biological and ecological destruction, seed savers are the true givers of seed. This gift or “dana” of Navadhanyas (nine seeds) is the ultimate gift – it is a gift of life, of heritage and continuity. Conserving seed is conserving biodiversity, conserving knowledge of the seed and its utilization, conserving culture, conserving sustainability.

Navdanya on Twitter

How to reach Bija Vidyapeeth

Archives