सादगी दिवस -12 जुलाई, 2020

स्व-आस्था से आत्मनिर्भर भारत की ओर
स्व-आस्था : स्व-शक्त एवं सरल जीवन के लिए
आत्मविश्वास : आत्मनिर्भर और सरल जीवन के लिए
’’जीवन ऐसी सादगी से जीयो, कि दूसरे भी सरलता से जी सकें। सरलता ही सार्वभौमिकता का सार है।’’
- महात्मा गांधी

स्व (अपने आप) आस्था (विश्वास, धारणा, मनन करना)
क्या हम जियो और ’जीने दो’ के जीवन-सूत्र को अपना सकते हैं।
क्या हम अपनी आवश्यकताओं को कम करके जी सकते हैं।
क्या हम पर्यावरण संतुलन को बिना नष्ट किये जी सकते हैं।
क्या हम प्रत्येक आदमी और बच्चे के लिए अच्छे स्वास्थ्य,पोषण और भुखमरी-मुक्त जीवन सुनिश्चित कर सकते हैं।
क्या हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति बेरोजगार न हो और कोई हाथ बिना काम के न रहे।
क्या हम धरती की जैव विविधता, जल और मिट््टी को पुनर्जीवित कर सकते हैं ताकि अन्न और जल का नवसृजन हो सके।


हां हम ऐसा कर सकते हैं।
हां हमें ऐसा ही करना चाहिए!


हम यह समझ सकें कि हम इस सुंदर धरती के मालिक या विनाशक न होकर, इस वसुधा परिवार (वसुधैव कुटुम्ब) के सदस्य हैं।
हम सभी जीवों के जीवन जीने के अधिकार का सम्मान करें।
यह जान लें कि हमारे प्रत्येक काम का असर इंसान सहित दूसरे जीवों पर पड़ता है।
यह स्वीकार करें कि सभी को भरपूर जीवन जीने के लिए पर्यावरण के साथ सामंजस्य बिठाना होता है।
सादगी भरा जीवन जीएं।
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत। तेन त्यक्तेन भुन्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम््।। (ईशोपनिशद््)
पूरी सृष्टि के जड़ और चेतन सहित सभी प्राणियों में एक ही परमात्मा निवास करता है। मानव इसके पदार्थों को आवश्यकतानुसार प्राप्त करे, परंतु उनको हड़पने की कोशिश न करें।
गांधी जी ने इस श्लोक को अपने जीवन में उतारा और उसे साधारण भाषा में कहा- ’’यह धरती हर किसी की जरूरत को पूरा कर सकती है लेकिन कुछ लोगों के लालच को नहीं।

लोभ की जगह भागीदारी को स्थान दें।
किसी पर निर्भर न रहें, आत्मनिर्भर बनें।
समुदाय और देश को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करें, कॉर्पोरेट के लालच में ना आएं।
पर्यावरण हितैशी कार्यों को तवज्जों दें, कृषि पारिस्थितिकी आधारित लघु उद्योग को बढ़ावा दें, शोषण और विनाशकारी कार्यों को नहीं।
स्व-आस्था हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।

हम एक ऐसी अर्थव्यवस्था बना सकते हैं, जो जीवंत-चक्रीय और एकजुटता को बढ़ावा देती हो।
भूख, गरीबी, और बिखराव तब पैदा होते हैं, जब अर्थव्यवस्था लोगों के लालच पर आधारित होती है।

धरती पर खेती सबसे उत्तम कार्य है। अन्न से प्राणों की रक्षा होती है। सहजता से उगाया गया अन्न (जैव विविध खेती के आधार पर) सबसे अच्छा भोजन है। अतः हम अच्छा भोजन उगाकर मानव समुदाय की सेवा कर सकते हैं।
सादगी धरती के दिये गए उपहारों पर जीवन यापन करने और दूसरे की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश है।
सादगी को अपनाने से जीवन भी सरल हो जाता है। और जीवन में न्याय और स्थिरता सुनिश्चित हो जाती है।
जीवन में आवश्यकताओं को करके सादगीभरा जीवन जीया जा सकता है। ताकि कोई भी दुःखी न हो और कोई भूखा न रहे।
जानने योग्य जरूरी बातें-
गरीबी, भुखमरी और लाइलाज बीमारियां उन निगमों/कॉर्पोरेट्स/बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लालच की देन है, जिन्होंने हमारे भोजन और प्रसंस्करित उत्पादों को जहरीले रसायनों से परोसा है।
गरीबी और भुखमरी उपनिवेशवाद के उप-उत्पाद हैं। अंग्रेजों ने भारत के किसानों से 45 ट्रिलियन डॉलर हड़पकर ब्रिटेन को हस्तांतरण कर दिये, और 6 करोड़ भारतीयों को अकाल की गर्त में धकेल दिया।
गरीबी, भुखमरी जल-जंगल-जमीन, चारागाह, बीज और जैवविविधता के दोहन/शोषणए आम जनमानस से धन लूटने जैसे अति-स्वार्थी कारनामों के परिणाम हैं, जो भारत पर थोपी गई थी।
गरीबी और भुखमरी उद्योगों पर आधारित वैश्विक औद्योगिक खेती पर का परिणाम था। धरती से उर्वरता छीनी गई थी और किसानो से खून-पसीने की कमाई छीनकर उन्हें बीमारू बनाकर आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया जाता था।

विश्व सादगी दिवस पर-
• हम जटिलता और बेईमानी की बजाय, सच्ची और सरल खाद्य प्रणाली विकसित करने का संकल्प लेते हैं।
• हम धरती और इंसान के स्वाथ्य को नष्ट करने और उसमें जहर घोलने वाली व्यवस्था को बदलकर, देखभाल करने वाली, स्वास्थ्य और पोषण देने वाली व्यवस्था का नवसृजन करने का संकल्प लेते हैं।
• हम धरती के स्वास्थ्य की रक्षा करने और उसके द्वारा दिये जाने वाले उपहारों को साझा करने का संकल्प लेते हैं।

कोविद-19 महामारी के चलते विश्व सादगी दिवस 2020 के अवसर पर ’स्व-आस्था’ संकल्प
कोविद-19 वैश्विक महामारी के चलते स्वास्थ्य संकट के इस दौर में ’स्व-आस्था’ खेती और देसी भोजन और प्रणाली से स्वास्थ उगाने के लिए हमारे आत्मविश्वास को जगाती है और हमें बीमारी मुक्ति का आश्वासन देती है।
स्व-आस्था हमारी वह घोषणा है जो यह व्यक्त करती है कि स्वस्थ भोजन ही स्वस्थ जीवन का आधार है। और अच्छा भोजन हमारा जन्मसिद्ध अधिकार भी है।
सरलता ही स्वराज है (स्व-संगठन और स्वशासन) और स्वदेशी (स्व-निर्मत, स्व-रचित)
हिंदी में स्व-आस्था का अर्थ- सरलता, सादगी, सहजता है।

सहज मतलब ’प्राकृतिक’ ’वास्तविक’ और इसका विलोम है अ-स्वाभाविक तथा अ-प्राकृतिक

हम संकल्प लेते हैं कि-
हम भोजन व्यवस्था को जटिलता और बेईमानी की जगह सरल और ईमानदारी में बदलने का संकल्प लेते हैं।
हम धरती और हमारे स्वास्थ्य को बर्बाद करने वाले जहरीली भोजन प्रणाली की जगह स्वास्थ्य-परक, धरती और समाज के अनुकूल तथा प्रकृति अनुकूल बनाने का संकल्प लेते हैं।
हम धरती के स्वास्थ्य की देखभाल करने और उसके द्वारा दिये गए उपहारों को समान रूप से साझा करने का संकल्प लेते हैं।
स्व-आस्था अन्न स्वराज तथा स्व-शासन को मजबूती देती है। स्व-आस्था सरल और सत्यपरक स्वराज, स्व-संघटन, ईमानदारी, समुदाय और एकजुटता पर आधारित है। कॉर्पोरेट ने अपने नियंत्रण में हमारे भोजन, उत्पादन करने के तरीके, भोजन प्रसंस्करण, जैव विविविध खेती से धरती के स्वास्थ्य को मिलने लाभ आदि सभी कुछ छिपा दिये। कॉर्पोरेट जगत ने हमारे ऊपर भुखमरी और बीमारियों को थोप दिया। वहीं स्व-आस्था सभी को अच्छा और स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन मुहैय््या कराती है।
स्व-आस्था स्वदेशी और स्थानीय भोजन प्रणाली की रक्षा करती है। स्व-आस्था समुदाय को देश से जोड़ती है। देशी बीज और भोजन आधारित हमारी चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रकृति के अनुरूप है, अतः प्रकृति इसकी रक्षा करती है।
हम क्या भोजन कर रहे हैं, हम किस तरह से अन्न उगा रहे हैं, हम किस तरह से भोजन उत्पादों को प्रसंस्करित कर रहे हैं, इस भोजन की वास्तविक कीमत क्या है हम यह जानते हैं।
वैश्विक व्यापार पर नियंत्रण करने वाला कॉर्पोरेट्स व्यवसाय के नियमों को अपने मनमाफिक चलाता है, पर्यावरण की रक्षा करने वाले नियमों को तोडता है, किसानों की आाजीविका छीनता है, हमारे स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करता है। कॉपोरेट््स भोजन की सही कीमत को छिपाकर ’सस्ते भोजन’ का भ्रम पैदा करता हैं। वे किसान जो औद्योगिक क्षेत्र के लिए उत्पादन करते हैं, कॉर्पोरेट उन्हें बहुत की कम कीमत अदा करते हैं। कॉर्पोरेट का ऐसा करना ना तो सरल और ना ही सहज है। यह सरासर बेईमानी और सासर शोषण है। यह प्रकृति और किसानों का शोषण है। कॉर्पोरेट जगत प्राकृतिक संसाधनों का बेहिसाब शोषण करता है, जिसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित होती है और लोगों के स्वास्थ्य पर नमारात्मक प्रभाव पड़ता है। हमारी धरती, हमारे किसान, हमारे लोग प्रदूषण के दंश को देर तक सहन नहीं कर सकते
हम अपनी धरती, अपने समुदाय और अपने स्वास्थ्य को पुनर्जीवित करने का संकल्प लें।

स्व-आस्था और सादगी के लिए हमारे 9 कदम-
1. रैखिक निष्कषर्ण अर्थव्यवस्था गरीबी, कर्जा और विस्थापन को उत्पन्न करती है, उसकी जगह पर चक्रीय/सर्कुलर अर्थव्यवस्था को प्रार्थमिकता दें, जिससे धन मात्र-कुछ हाथों में थमकर न रह जाए और सभी के हाथों को काम मिले।
2. जीएमओ और बीजों पर पेटेंट के माध्यम से लगान/रॉयल्टी निकालने वाले कॉर्पोरेट जगत के नियंत्रण की जगह, जनमानस के लिए बीज और बीज स्वराज को अपनाएं।
3. जहरीले रसायनों पर आधारित औद्योगिक खेती की जगह, प्रकृति के नियमों के अनुकूल कृषि पारिस्थितिकी के आधार पर जैव विविध खेती को अपनाएं।
4. धरती पर एकल खेती/मोनोकल्चर मानसिकता की जगह, जैव विविधा को स्थान दें। अंधाधुंध जीवाश्म-इंर्धन और पैसे के बल पर प्रति-एकड़ उत्पादकता की जगह, प्रति-एकड़ स्वास्थ्य और देखभाल जैसे धरती और समाज को ’लौटाने के नियम’ पर आधारित खेती को स्थान दें।
5. औद्योगिक प्रसंस्करण में भारी ऊर्जा, रसायन और नकली सामाग्री इस्तेमाल होते हैं, उसकी जगह स्वास्थ्य, गरिमा और स्वतंत्रता देने वाले कुटीर उ़द्योग आधारित प्रसंस्करण को बढ़ावा दें।
6. लोभ-लालच आधारित कृषि एवं भोजन प्रणाली पारिस्थितिकी के बहुत बडे़ भाग को प्रभावित करती है जिसमें जमीन, बीज, भोजन और पानी के लिए दूसरे के हक को मारकर गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी तथा पारिस्थितिकीय आपातकाल जैसी स्थिति खड़ी हो जाती है। जैव विविधता आधारित खेती से पारिस्थितिकी का ह्रास नहीं होता और सभी के हाथ को काम, सभी को अच्छा भोजन-पोषण-स्वास्थ्य की देखभाल तथा न्याय सुनिश्चित होता है।
7. वैश्विक कॉर्पोरेट नियंत्रित आधारित घटिया खाद्य प्रणाली के स्थान पर, स्थानीय, जैव विविध आर्थिकी युक्त, और सामुदायिक नियंत्रण वाली भोजन व्यवस्था को प्राथमिकता दें।
8. कॉर्पोरेट तानाशाही हमें अपने भोजन को उगाने और प्रसंस्करण करने से रोकती है, अतः अन्न स्वराज तथा भोजन की स्वतंत्रता की ओर लौटें।
9. मानसिक उपनिवेशवाद और ज्ञान के हेर-फेर के द्वारा बिग फार्मा, बिग एग्रीकल्चर, बिग टेक और जहरीले गिरोहों की जगह, ज्ञान स्वराज और जीवन सुलभ ज्ञान को स्थान दें।


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Navdanya means “nine seeds” (symbolizing protection of biological and cultural diversity) and also the “new gift” (for seed as commons, based on the right to save and share seeds In today’s context of biological and ecological destruction, seed savers are the true givers of seed. This gift or “dana” of Navadhanyas (nine seeds) is the ultimate gift – it is a gift of life, of heritage and continuity. Conserving seed is conserving biodiversity, conserving knowledge of the seed and its utilization, conserving culture, conserving sustainability.

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