बीज हमारे लिए धरती माॅं की ऐसी अनुपम भेंट है, जिसके आधार पर हमारी संस्कृति 8000 वर्षों से लगातार आगे बढ़ रही है। हमारी संस्कृति में बीज/अन्न को वस्तु न मानकर पवित्र और ’प्राणों का आधार’ माना गया है। बीज-स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जीवन-पर्यंत हम इसकी रक्षा करते रहेंगे!
अन्नं हि धान्य संजातं धन्यं कृष्या विना न च।
तस्मात् सर्वं परित्यज्य कृषिं यत्नेन कारयेत् ।।7।। कृषि पराशर।।
भावार्थः बीजों से अन्न की प्राप्ति होती है। अन्न से हमें भोजन मिलता है। भोजन से हमारे प्राणों की रक्षा होती है। बीज के बिना खेती करना सम्भव नहीं है, खेती के बिना अन्न उत्पन्न नहीं हो सकता। बिना अन्न के जीवित नहीं रहा जा सकता। अतः कष्ट सहकर भी यत्नपूर्वक खेती करनी चाहिए।
बीज रहंे तो अन्न मिलेगा, अन्नमयी हैं प्राण।
बीज बचेंगे, खेत बचेंगे और बचेगी जान।।
विगत कुछ वर्षों से बहुराष्ट्रीय कृषि-व्यापार कम्पनियों ने भारतीय बीज बाजार में घुस-पैठकर हमारी बीज-विविधता और बीज-सम्प्रभुता को बुरी तरह से प्रभावित किया है। विगत 40 वर्षों में देशी बीज और उनके रखरखाव का ज्ञान हम भूल-से गये हैं। अब तो भारत में ऐसी गिनती की ही महिला किसान रह गई हैं, जिन्हें जैव-विविधता और उसमें निहित पोषण-शक्ति का ज्ञान है। आज ये कम्पनियां और उनके विक्रेेता परम्परागत एवं देशी-बीज तथा जैविक-कीटनाशक आदि का विरोध कर रहे हैं। यह सब बीज-साम्राजवाद और बीज-उपनिवेशवाद के चलते हो रहा है।
मोनसेटो बीज-उपनिवेशवाद का एक बड़ा उदाहरण है। दो-दशक से भी कम समय में इस कम्पनी ने बी.टी. कपास के माध्यम से भारतीय कपास पर 90 प्रतिशत नियंत्रण करके अवैधानिक एकाधिकार स्थापित कर दिया है। भारत में मोनसेंटो ने बहुत बड़ी मात्रा में राॅयल्टी वसूलने और बाजार में हेराफेरी के माध्यम से बीजों की कीमत में वृद्धि कर किसानों को कर्ज की गिरफ्त में धकेला और उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया है। अबतक कुल 300000 किसान आत्महत्याओं में से लगभग 80 प्रतिशत आत्महत्याएं बी.टी.कपास उत्पादक क्षेत्रों में हुई हैं। वर्ष 2015 में पंजाब में बी.टी.कपास की असफलता के कारण किसान तथा मजदूरों को 70,000 करोड़ का घाटा हुआ। बी.टी. कपास उत्पादक किसानों को पंजाब के मालवा में 90-95 प्रतिशत घाटा हुआ और कर्ज के बोझ तले दबे होने के कारण प्रत्येक दिन कम से कम चार किसान आत्महत्या करने के लिए विवश हो रहे हैं।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य में कृषि आपदा प्रबंध कार्यबल गठित करना इस बात का संकेत है कि जहां भी बी.टी कपास बोया जाए, वहां आत्महत्या होना निश्चित है। इस कार्यबल ने बी.टी. कपास को ’मौत की फसल’ कहकर, इस फसल पर रोक लगाने की सलाह दी है।
मोंनसेटो भारतीय बीज-सम्प्रभुता पर सेंध लगाकर भारतीय कृषि नीति को अपने ऐजेंडे के रूप में बदलते हुए भारतीय किसानों के संवैधानिक अधिकारों का हनन कर रहा है।
पौध किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम 2001 किसानों के लिए समर्पित कानून है। इस कानून में कहा गया है, ’’किसानों को किसी भी प्रकार के बीज बोने, उन्हें बचाने, उपयोग करने, दूसरे किसानों को देने, साझेदारी करने तथा बेचने हेतु उत्पादन करने का पूर्ण अधिकार है।’’
8 मार्च 2016 को सरकार ने बी.टी. कपास की बीज-दर को नियंत्रित करने का निर्णय लिया, तो इस फैसले से तिलमिलाये मोनसेंटो और उसके एसोसिएशन आॅफ बायोटेक्नोलाॅजी लेड इंटरप्राइजेज (ए.बी.एल.ई) समूह ने इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दे डाली। इस मामले में किसानों की जीत हुई और और मोनसेंटो की करारी हार हुई। भारत सरकार का अगला कदम बीज राॅयल्टी तथा लाइसेंस पर एक विस्तृत अधिसूचना जारी करना है, जिससे बीजों की राॅयल्टी सीमित होगी और बीजों की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण हो सकेगा। लेकिन, ऐसा लगता है यह अधिसूचना ए.बी.एल.ई लाॅबिंग की पैरवी के चलते अभी ठण्डे बस्ते में है।
मोनसेंटो समर्थित कम्पनियों की लाॅबी और अमेरिकी सरकार उस भारतीय कानून को बदलने का दवाब बना रहे हैं, जिसके चलते हमारी जैव-विविधता तथा किसान अधिकारों की रक्षा होती है। वे चाहते हैं कि पेटेंट के माध्यम से हजारों वर्ष पुराने हमारे जैव-विविधता सम्बधित पारम्परिक ज्ञान पर कार्पोरेट जगत का अधिकार हो जाए ताकि हमारे पूर्वजों द्वारा खून-पसीने से अर्जित ज्ञान और इस पावन धरती से वे मुनाफा कमा सकें। इसी उद्देश्य को ध्यान में नया बौद्धिक सम्पदा अधिकार (अमेरिकी सरकार और कम्पनियों के दबाव के चलते) नीति को बनाया गया है। अब समय आ गया है कि भारत सरकार जीवन-रूपी बीजों को इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथों लूटने से बचाएं। हम इन कम्पनियों को अपने बीज, अपना ज्ञान, अपना जीवन और अपने गणतंत्र को लूटने नहीं देंगे। बीज-स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। बीज-स्वराज और जैविक-क्रांति आंदोलन से जुड़कर भारत को पारस्थितिक संकट, कृषि आपदा और कुपोषण से बचाने में अपना योगदान दें!
बौद्धिक सम्पदा अधिकार में परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रभाव:
भारत सरकार अमेरिका और उसकी कम्पनियों के दबाव में आकर भारतीय बौद्धिक सम्पदा अधिकार नीति में परिवर्तन करे, ऐसा हमें कदापि मंजूर नहीें, क्योंकि ऐसा होने से-
बी.टी. कपास की राॅयल्टी तथा कीमत बढ़ जायेगी। किसानों द्वारा आम उपयोग में लाये जाने वाले और साझा किये जाने वाले बीजों पर कम्पनियों का निजीकरण हो जाएगा।
धन उगाही के लिए बनाया गया ’बी.टी. बैंगन माॅडल’ दूसरे बीजों (देशी एवं संकर) पर भी लागू हो जाएगा।
आयुर्वेदिक जैसे पारम्परिक ज्ञान पर पेटेंट होने लगेगा, जिसके चलते अमेरिका की कम्पनियों द्वारा भारतीय पारम्परिक ज्ञान पर कब्जा हो जाएगा।
भारत भोजन एवं बीजों के ऐसे साम्राज्यवाद की जकड़ में आ जायेगा, जिसका नियंत्रण अमेरिका की मोनसेंटो, सिंजेंटा, बायर और कारगिल जैसी कम्पनियों के हाथों में होगा।
आई.पी.आर. के मुद्दे पर कम्पनियों की मांगे बढे़ेंगी, जिसके चलते जैव-विविधता तथा किसानों के अधिकारों का हनन होगा और भारतीय सम्प्रभुता को गहरी क्षति पहंुचेगी।
हमारी मांग:
बीज ही जीवन है। किसान तथा परम्परागत बीज उत्पादकों का जैव-विविधता पर नैसर्गिक अधिकार है।
हमने अपने पूर्वजों से अर्जित ज्ञान सम्पदा को साझेदारी के माध्यम से आगे बढ़ाया है। कम्पनियां अपने ऐजेंडे तथा एकाधिकार के हथियार से हमारे ज्ञान पर डाका डालंे, ऐसा हमें कदापि मंजूर नहीं।
एक नागरिक, किसान और उपभोक्ता होने के नाते अपने बाजार पर नियंत्रण रखना हमारा अधिकार है। सरकार को चाहिए कि वह बी.टी. कपास की कीमतों को नियंत्रित करे तथा मोनसेंटो को अवैधानिक राॅयल्टी के माध्यम से किसानों का शोषण करने से रोके।
सरकार लालची देशों और उनकी कम्पनियों के दबाव में आकर पौध किस्म सुरक्षा तथा किसान अधिकारों में बदलाव करने से बाज आए और भारत के नागरिकों की एकता का सम्मान करे। नए बौद्धिक सम्पदा अधिकार की अधिसूचना हमें कदापि मंजूर नहीं!
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