रामगढ़, देहरादून। 02 सितम्बर, 2015। ’जैविक भोजन के माध्यम से जिस तरह हम अपने स्वास्थ्य को स्वस्थ रख सकते हैं, उसी तरह जैविक-खेती से हमारे खेतों का स्वास्थ्य सुधर सकता है और हमारे किसान समृद्ध हो सकते हैं। यह कहना था विश्व-विख्यात पर्यावरणविद् एवं नवधान्य की संस्थापक निदेशक, डा. वंदना शिवा का। वह नवधान्य जैविक-फार्म, रामगढ़ देहरादून में जैविक-खेती तथा कृषि-पारस्थितिकी पर समझ बढ़ाने हेतु देश-विदेश से आये शैक्षणिक भ्रमण-दल को सम्बोधित कर रही थीं। इस शैक्षणिक सत्र के दूसरे दिन डा. शिवा ने कृषि-पारस्थितिकी, कृषि-भूमि में सुधार, मिट्टी की उर्वरता आदि विषयों पर व्याख्यान दिया। इस अवसर पर कनाडा से आए जैविक-खेती तथा ग्रामीण विकास के विशेषज्ञ, डा. अविनाश सिंह भी उपस्थित थे। डा. वंदना शिवा ने कहा कि अंधाधुंध रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के छिड़काव से जहां हमारी उपजाऊ भूमि बंजर हो रही है, वहीं हमारी फसलें कई तरह की बीमारियों की शिकार होने लगी हैं। उन्होंने कहा कि हरित-क्रांति के फलस्वरूप पंजाब जैसी उपजाऊ धरती की अन्नोत्पादन क्षमता अपने न्यूनतम स्तर पर आ रही है और वहां जल-स्तर लगातार घटता जा रहा है। वहीं किसान कर्ज के बोझ से तंग आकर आत्महत्या कर रहा है। डा. शिवा ने कहा कि अब रसायनिक खेती के साथ जी.एम. यानी जैव-यांत्रिक तकनीक से बने हुए बीजों द्वारा उत्पादित फसलों को बढ़ावा देने की बात की जा रही है जोकि कृषि-जैवविविधता, किसान और जनसामान्य के स्वास्थ्य तथा समृद्धि के साथ खिलवाड़ से भी अधिक गम्भीर है। इस अवसर पर उन्होंने जी.एम. बीज बनाने की प्रौद्योगिकी पर अपनी बात साझा की। उन्होंने बताया कि किस तरह से बड़ी बीज कम्पनियां किसानों को बाजार से बीज खरीदने पर मजबूर करने की साजिश रच रही हैं। डा. शिवा ने कहा कि कृषि-जैवविविधता को बचाने के लिए पारम्परिक फसल तथा उनके बीजों का संरक्षण अति-आवश्यक है। उन्होंने कहा कि किसान जैविक खेती के माध्यम से ही समृद्धि-सम्पन्न हो सकेंगे। इस अवसर पर उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों के जैविक-खेती एवं पर्यावरण से सम्बधित प्रश्नों के भी उत्तर दिये। दूसरे सत्र में भ्रमण दल ने कार्यकारी निदेशक, डा. विनोद कुमार भट्ट तथा कृषि विशेषज्ञ, डा. आर.एस. रावत के साथ नवधान्य फार्म का प्रयोगात्मक भ्रमण भी किया। ज्ञात हो कि 30 सितम्बर तक चलने वाले शैक्षिक भ्रमण के इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न प्रांतों सहित विदेश यथा संयुक्त राज्य अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया, द.कोरिया, इंडोनेशिया, बाली, प. जकार्ता, स्पैन, पुर्तगाल, फ्रांस, ग्रीस आदि देशों से 56 प्रशिक्षणार्थी भाग ले रहे हैं। इन प्रतिभागियों के साथ देश-दुनिया के लगभग एक दर्जन से अधिक जानेमाने वैज्ञानिक प्रयोगात्मक तथा सैद्धांतिक बातें साझा कर रहे हैं।