इतिहास में पहली बार मानव प्रजाति का भविष्य अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। मानव समाज ने  धरती को अब तक बहुत घायल कर दिया है। यही स्थिति बनी रही तो इस सृष्टि से मानव प्रजाति और उसकी संस्कृति निश्चित ही विलुप्त हो जाएगी। पिछले 200 वर्षों से हमने जीवांश ईंधन का इस कदर दोहन किया कि ऊर्जा प्रदान करने वाले इस द्रव्य के अकूत भंडार खोखले हो चुके हैं। अब प्रकृतिक में संतुलन स्थापित करने हेतु एक मात्र विकल्प यह है कि हमने इस धरती को जो घाव दिये हैं, उनकी भरपाई कर पृथ्वी की आरोग्यता को बढ़ाया जाएं और सृष्टि के इस ग्रह को चिरायु बनाए रखने के लिए हर सम्भव प्रयास किए जाएं। ऐसा करने के लिए मानव समाज में एकता का संचार और भविष्य के प्रति एक सकारात्मक आश बनाए रखना परम आवश्यक है। देश का नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर इस धरती की रक्षा करें। धरती हमारी मां है और उसकी रक्षा में ही हम सबकी भलाई और हमारा भविष्य सुरक्षित है।



1.जैविक मिट्टी में निवास करती है- हमारी सभ्यता, सुरक्षा और समृद्धि।

हम अपनी मिट्टी और जैव-विविधता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हंै। हमारी जैविक मिट्टी कार्बन को ग्रहण करती है और पानी का संग्रह करती है। पारिस्थितिकीय संतुलन पर आधारित कृषि पुर्नचक्रीकरण के आधार पर कार्बनिक पदार्थों को पोषक तत्वों में बदलती है। सर अलबर्ट हावर्ड ने कहा था कि इस मिट्टी को कुछ दिये बिना ही धरती से विभिन्न वस्तुएं प्राप्त करना डकैती करना जैसा है। हम धरती द्वारा द्वारा किये गये उपकारों के आभारी हैं और लौटाने की रीति को ध्यान में रखते हुए अपनी जिम्मेदारी को मानते हुए हम उसे जैविक कार्बन को जैविक पदार्थ के रूप में        वापस लौटायेंगे।



2. हवा-पानी, मिट्टी, वातावरण, जैव-विविधता और बीज हम सबके लिए हैं।

पृथ्वी ने हमें जीवन रूपी महत्वपूर्ण उपहार दिया है। यह उपहार सभी के लिए समान अधिकार, कर्तव्य, आजीविका और रक्षा लिए हुए है। हमारी जैव-विविधता और विभिन्न तरह के बीज जनसाधारण के लिए है। इनको पेटेंट करने का अर्थ है अपनी जैव-विविधता को विनाश और किसानों को कर्ज की गर्त में धकेलना। बिना मिट्टी के न तो जीवन और ना ही भोजन की प्राप्ति सम्भव है। जल भी जनसाधारण के लिए है। यह कोई व्यापार की वस्तु नहीं है। ’जल है तो जीवन’ है। वातावरण और उससे मिलने वाली वायु हमें जीवन-शक्ति देती है। वातावरण जितना स्वस्थ रहेगा हमारी जलवायु उतनी ही स्वस्थ होगी। आज मिट्टी, हवा, और जल का लगातार निजीकरण होता जा रहा है जिसके कारण हमारा वातावरण लगातार प्रदूषित हो रहा है। हमें इन तत्वों का किसी भी कीमत पर निजीकरण होने से रोकना होगा। हमें इन जीवन तत्वों को सहयोग, देखभाल और एकजुटता के आधार पर रक्षा करके उन्हें पुनः प्राप्त होगा।



3.बीज-स्वतंत्रता और जैव-विविधता भोजन की स्वतंत्रता और जलवायु स्थिरता की नीव है।

हम बीज-स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम सभी मानव समुदायों के साथ मिलकर ईमानदारी पूर्वक संगठनात्क रूप में जैव-विविधता को बचाकर सभी के लिए बीजों की उपलब्धता निश्चित करेंगे। खुले परागण के आधार पर बढ़ाये गए गैर-जी.एम.ओ और गैर-पेटेंट बीजों का आदान-प्रदान करना हमारा अभिन्न अधिकार है। किसानों के अधिकार स्वयं प्रकृति द्वारा संरक्षित हैं। यह धरती हमें आदिकाल से हमारी पीढि़यों को अपनी जैव-विविधता के माध्यम से पाल-पोष रही है। बीज प्रकृति का अनमोल उपहार है। यदि कोई भी कानून अथवा प्रौद्योगिकी हमारी बीज-स्वतंत्रता को कमजोर करने का प्रयास करेगा हम ऐसे प्रयासों का विरोध करेंगे। हम अपने बीजों की रक्षा करने के साथ ही जी.एम.ओ. तथा पेटेंट के विरोध में एक साथ खडे़ रहेंगे।



4.औद्योगिक कृषि है जलवायु संकट के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार।

हरित-गृह गैसों को बढ़ावा देने में विश्व भर में की जा रही औद्योगिक खेती 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान है। हरित-गृह गैसे हमारी जलवायु के संतुलन को बिगाड़ रही हैं। ये गैसे वनों के कटाव, जीवाश्म- ईंधन पर आधारित खादों, पैकेजिंग, प्रसंस्करण, रिफ्रिजरेटर और लंबी दूरी के परिवहन के कारण अधिक उत्सर्जित हो रही हैं। ज्ञात हो कि औद्योगिक खेती जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण है ऐसी खेती से कभी भी भुखमरी और जलवायु परिवर्तन की समस्या का हल नहीं मिल सकता। हम जलवायु परिवर्तन को भू-प्रौद्योगिकी, ’स्मार्ट क्लाइमेट’ एग्रीकल्चर, जैव यांत्रिकी के आधार पर शोधित बीज और सतत सघनता जैसे समाधानों में कभी विश्वास नहीं रखते।

5.पारिस्थितिकी पर आधारित छोटी कृषि जोत और स्थानीय खाद्य प्रणाली से मिलेगा तापमान पर नियंत्रण और भरपूर पोषण।

हम पारस्थितिकी पर आधारित छोटी जोत की खेती करने के लिए सदैव तत्पर हैं। ऐसी कृषि-भूमि से जहां हमें अपने भोजन का 70 प्रतिशत भाग मिलता हैं, वहीं जैव-विविधता और जल-तंत्र के साथ जलवायु को स्थिरता भी मिलती है। हम ऐसे स्थानीय भोजन-तंत्र स्थापित करने मे सहयोग देंगे, जिनसे भोजन और पोषण की प्राप्ति के साथ ही जलवायु संकट का समाधान भी सम्भव हो सके। जैव-पारस्थितिकी, छोटी-कृषि जोत तथा स्थानीय भोजन-तंत्र सम्पूर्ण विश्व को पोषण के साथ जलवायु संतुलन देने मंे सक्षम है।



6.मुक्त व्यापार और कॉर्पोरेट जगत की बेलगाम स्वतंत्रता पृथ्वी और मानव स्वतंत्रता के लिए खतरा है।

प्रकृति हमें जीवन जीने के लिए स्वतंत्र और अबाध रूप से वायु, जल, और अन्न प्रदान करती है। इन   तत्वों के अतिरिक्त सम्मान जनक जीवन जीने के लिए स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है, लेकिन आज कार्पोरेट जगत ने ’मुक्त व्यापार’ के माध्यम से हमारी स्वतंत्रता को छीन लिया है। कार्पोरेट जगत अपने लाभ के लिए लगातार जैव-विविधता को अपना बंधक बना रहा है। कार्पोरेट जगत प्रकृति द्वारा प्राप्त प्रत्येक का तत्व का बालात ब्यापार करने पर लगा हुआ है। इसके चलते हमारी धरती कई संकटों की शिकार हो रही है और जनसामान्य की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ती जा रही है। पिछले दो-दशक यानी जबसे कि विश्व व्यापार संघ ने कार्पोरेट जगत के द्वारा लाये गये ’मुक्त व्यापार’ समझोते पर हस्ताक्षर किये, तब से व्यापार में ढ़ील के चलते पारस्थितिक एवं सामाजिक अस्थिरता में बढोंत्तरी हुई है। हम पारदर्शी व्यापार में विश्वास रखते हैं और टी.टी.आई.पी. तथा टी.पी.पी. जैसे कार्पोरेट्स के अधिकारों को बढ़ाने वाले किसी भी समझोते का विराध करते हैं। कार्पोरेट जगत को जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने और पर्यावरण को अत्यधिक मात्रा में प्रदूषण फैलाने के एवज में हर्जाना भरना होगा।

7.अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने वाले स्थानीय तंत्र ही वास्तव में सार्थक कार्य कर रहे हैं और इन्हीं से पृथ्वी और अन्य सभी की भलाई हो सकती है।

प्रकृति से हमें ’प्राप्त करने की अपेक्षा देने’ में विश्वास करने की शिक्षा मिलती है। स्थानीय और जीवंत अर्थव्यवस्था भी इसी आधार पर फलूभूत होती है। विशेष वर्ग को लाभ पहुंचाने की अपेक्षा जनसामान्य का जीवन संवारने और कल्याण के भाव से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था पर भविष्य निर्भर करता है। औद्योगिक कृषि का ध्येय मात्र और मात्र उत्पादन और उपभोग है, इसीके चलते ऐसे कृषि-तंत्र ने जैव-विविधता का विनाश कर धरती की पारस्थितिक प्रक्रिया में बहुत बड़ी बाधा पहुंचाई है और लाखों लोगों को खेती-विहीन कर दिया है। जैविक अर्थव्यवस्था में बर्बादी के लिए कोई स्थान नहीं है।

8. ’वसुधैव कुटुम्बकम’ का मतलब ’विविधता में एकता’।

हम परस्पर सहभागिता और स्वस्थ लोकतंत्र में विश्वास करते हैं और अपने लाभ के लिए लोकतंत्र से छेड़खानी का हम प्रबल विरोध करते हैं। हम पृथ्वी तथा उसके प्राणियों के कल्याण हेतु साझेदारी और विविधता में एकता के सिद्धांत को अपना आदर्श मानते हैं। हम हिंसा और अधःपतन के दुष्चक्र को तोड़ने और सभी लोगों और सभी प्रजातियों की भलाई के लिए अहिंसा और उत्थान के आधार पर सद्भाव बढ़ाने हेतु प्रतिबद्ध हैं। हम घृणा और द्वेष के आधार पर बंटने की अपेक्षा एक धरती और एक मानवता के रूप में बंधने में विश्वास रखते हैं। हम गांधी जी की उस शिक्षा में विश्वास रखते हैं जो कहती है, ’जब नियम और कानून मानवता के प्रति नैसर्गिक नियमों का उलंघन करने लगे तब एकजुट होकर असहयोग प्रारम्भ कर दीजिए।’

8.हम इस धरती के विशिष्ट समुदाय हैं।

हम पुनः ’वसुधैव कुटुम्बक’ यानी धरती में लोकतंत्र स्थापित करेंगे। ऐसा करने से मनुष्य में सभी प्राणियों के प्रति सद्भावना जगेगी और हमारी धरती चिरायु रहेगी। जब मानव में सभी के प्रति सद्भावना प्रकट होगी तभी मानवता से भरा-पूरा संसार खिल उठेगा और हमारे द्वारा अपनी मां यानी इस भूमि को कोई भी कष्ट नहीं मिलेगा और सच्चे अर्थों में धरती चिरायु हो सकेगी। तब सभी को भोजन, हवा, पानी, और सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार मिलेगा। सही मायने में यही वास्तविक स्वतंत्रता है।

हम धरती और मानवता को बचाने के लिए एक समझौता-पत्र प्रस्तुत कर रहे हैं।

  1. मनुष्य होने के नाते हमें पूरी-पूरी समझ है कि मनुष्य सहित सभी प्राणी और उनकी प्रजातियों को धरती पर उत्साह पूर्वक जीवन जीने का पूरा अधिकार है।
  2. कि धरती मां के अधिकार और मानव अधिकार किसी भी तरह से एक दूसरे से अलग नहीं हैं।
  3. कि धरती के साथ हिंसा और मानवता के प्रति अन्याय में कोई अंतर नहीं है।
  4. कि न्याय, शांति मानवता और मानव अधिकार की निरंतरता को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
  5. हम यत्र-तत्र-सर्वत्र हम ’आशा के बाग’ के बाग लगाएंगे।
  6. हम अपने खेत में, उद्यान में, बालकनी में, छतों में जैविक-अन्न उत्पन्न करेंगे।
  7. हम पृथ्वी को स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त करने हेतु एक ठोस समझोते के प्रतीक के रूप में में आशा के बाग लगाएंगे।
  8. इस एक छोटे से कदम के द्वारा हम लाखांे लोगों में निहित उस शक्ति को जागृत करने का कार्य करेंगे, जिससे उत्पन्न एकता और सद्भावना से पृथ्वी की सेवा के साथ मानुष्यों के लिए स्वस्थ अर्थव्यस्था और जीवंत
लोकतंत्र पोषित हो सकेंगे। इस तरह से अपनी पृथ्वी और उसके सद्भावना युक्त नागरिकों के लिए परिवर्तन के नए बीज बोएंगे।

हम ’वसुधैव कुटुम्बकम’ (धरती पर लोकतंत्र) को पुनः स्थापित करने और न्याय, गरिमा, स्थिरता तथा शांति बनाए रखने के लिए निरंतर परिवर्तन के बीज बोकर ’आशा के बाग’ लगाएंगे।
Pin It

About Navdanya

Navdanya means “nine seeds” (symbolizing protection of biological and cultural diversity) and also the “new gift” (for seed as commons, based on the right to save and share seeds In today’s context of biological and ecological destruction, seed savers are the true givers of seed. This gift or “dana” of Navadhanyas (nine seeds) is the ultimate gift – it is a gift of life, of heritage and continuity. Conserving seed is conserving biodiversity, conserving knowledge of the seed and its utilization, conserving culture, conserving sustainability.

Navdanya on Twitter

How to reach Bija Vidyapeeth

Archives