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प्रधानमंत्री जी,

भारत सरकारनई दिल्ली

8. सितम्बर, 2016



प्रिय नरेंद्र मोदी जी,

विषयः भारतीय बौद्धिक सम्पदा अधिकार कानून और प्रतिस्प्रर्धा अधिनियम का बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उलंघन

मोनसेंटो भारत में अवैधानिक बी.टी कपास के रूप में जी.एम.ओ को लेकर आया। इस तरह से उसने जानबूझकर भारतीय कानून का उलंघन किया है। मोन्सेंटो हमारे पैटेंट कानून;वनस्पति प्रजाति और किसान अधिकार अधिनियमआवश्यक वस्तु अधिनियमएकाधिकार के विरूद्ध कानून (प्रतिस्प्रद्धा अधिनियम) को बदलने का कार्य कर रहा है। ऐसा लगता है,जैसे कि भारत में नतो कोई संसद हैन कोई गणतंत्र और ना ही कोई सम्प्रभु कानून। ऐसा प्रतीत होता है कि इन सभी कानूनों का भारत से कोई लेना-देना ही नहीं है।

भारत में बी.टी. कपासबहुत पहले से चली आ रही अवैध कार्यों की कहानी है। मोनसेंटो-माहिको ने 1995 में अवैधानिक रूप से बी.टी. कपास का आयात किया और 1998 से इसका खुले खेतों में परीक्षण प्रारम्भ कर दिया।

जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रुवल कमीटी(जी.ई.ए.सी) के अनुमोदन के बिना ही भारत में बी.टी. कपास आयात करने के मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई। मोन्सेंटो भारतीय किसानों से अवैधानिक रूप से लगान वसूलने पर लगा हुआ है और इस क्षेत्र में लगातार एकाधिकार की स्थापना कर रहा है। यहां वर्तमान में कपास की खेती पर मोनसेंटो के बी.टी.कपास का 95 प्रतिशत कब्जा बना हुआ है। सरकार ने भी मोन्सेंटो के गैर-कानूनी और गैर-वैधानिक रूप से लगान वसूली की गतिविधि पर नियंत्रण करने हेतु अपनी सक्रियता दर्शाई है।

2006 में एम.आर.टी.पी.सी. का एक वाद आंध्र प्रदेश सरकार के सामने आयाजिसमें रिसर्च फाउंडेशन के हस्तक्षेप पर किसानों के हित में बीजों के मूल्य में कमी लाने की बात की गई। आंध्र प्रदेश ने भी हाब्रिड बी.टी. कपास के बीज मूल्य हेतु बीज कम्पनियों से बात की,और 29 डाॅलर प्रति 450 ग्राम. की अपेक्षा 18 डाॅलर प्रति 450 ग्राम बीज मूल्य हेतु पहल की। शीघ्र ही दूसरे राज्यों ने भी यही बीज नीति अपनाई।

दिसम्बर, 2015 में आवश्यक मूल्य अधिनियम के अंतर्गत बीज मूल्य नियंत्रण आदेश पारित किया गयालेकिन कानून को स्वीकार करने के बजाय मोन्सेटों ने दिल्ली और कर्नाटक उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी। दिल्ली न्यायालय में यह वाद खारिज हो गयावहीं कर्नाटक उच्च न्यायालय में पहले तो इस वाद को विचाराधीन रखा गया और फिर खारिज कर दिया गया।

क्योंकि मोनसेटों ने बीजों पर यह एकाधिकार पूर्णरूप से गैर-वैधानिक रूप से स्थापित किया थाइसलिए इस वाद को सरकार सहित कई दलों कमीशन आॅफ इंडिया (सी.सी.आई.) को दिया गया। सी.सी.आई. अनुचित व्यापार और अपमानजनक एकाधिकार को नियंत्रित करने वाला प्राधिकरण है। ज्ञात होमोनसेंटो ने आज तक एक बार भी सी.सी.आई. का सामना नहीं किया और अब उसे न्यायालय में घसीट रहा हैइसी सम्बंध में एक वाद न्यायालय द्वारा रद्द किया जा चुका है।

देश के प्रधानमंत्री के रूप में हमारा विश्वास है कि आप भारतीय कानून की रक्षा करेंगे,भारतीय संविधान की प्रभुसत्ता के लिए मोनसेंटो को घातक एवं अनुचित क्रियाकलाप करने की अनुमति नहीं देंगे और भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले नियामक ढ़ांचे की रक्षा करेंगे।

यहां तक कि मोनसेंटो द्वारा आई.पी.आर. पर बीज तथा पौधों से सम्बधित पेटेंट के खोखले दावे अब सबके सामने हैं।

रसायन उद्योग जी.एम-सरसों (डी.एम.एच-11) को लाने की पूरी तैयारी पर है। जी.एम-सरसों में बार्नेज/बारस्टर/बार जीन डालने से पौधे के पुरूष भाग को बांझ बनाया गया है। यह बार या बार्नेज जीन ग्लूफोसिनेट नामक रसायन का प्रतिरोधी होता है। इस जी.एम-सरसों को बांझ बनाने की तकनीक को सार्वजनिक तौर पर ’नवाचार’ कहा जा रहा है। 2002 में बायर कम्पनी ने जी.एम-सरसों को व्यावसायिक तौर पर उगाने हेतु अनुमोदन पर अनुमति मांगी थीजिसे कि स्थगित किया गया।

भारत में ग्लूफोसिनेट पर पाबंदी होने के बावजूद बायर के मित्र इस रसायन को असाम के चाय बागान और हिमाचल के सेब बागानों में बेचने पर लगे हुए हैं। वे इन रसायनों को हमारे नौनिहालों के शरीर में घोलने के नए-नए तरीके निकाल रहे हैं।

सभी प्रमुख पेटेंट बायर फसल विज्ञान के बार जीन से सम्बंधत रखते हैंजोकि जैव यांत्रिकी के तहत बायर ओर एवेंटिस फसल विज्ञान के साथ साझेदारी के परिणाम स्वरूप प्रकट हुआयह शेरिंगरोन पोलेंक तथा होइचस के जैव यांत्रिकी विभाग द्वारा बनाया गया। बाद में बायर ने इवोजीन( इवोजीन जीन मैंपिंग पर पेटेंट करने वाली कम्पनी) के साथ सहयोग समझौते के माध्यम से पादप आनुवांशिकी तंत्र पर अधिग्रहण किया।  बायर का मोनसेंटे के साथ क्रास लाइसेंस समझौता हो रखा है।

अब मोनसेंटो और बायर एक होकर अपना़ एकाधिकार स्थापित करने जा रहे हैं। अधिकतर जीन पेटेट बार्नेज/बार जीन पर बायर का नियंत्रण हैं। जी.एम-सरसों को दीपक पेंटल के एक नवाचार के तौर पर दिखाया जा रहा है। दीपक पेंटल दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवा निवृत्त प्राध्यापक हैंजिन्हें जी.एम. बीजों का व्यावसाय करने का अधिकार नहीं है। भारतीय बीज उद्योग द्वारा बीज निर्माण एवं उत्पादन की गतिविधियां चलाई जा रही हैं। बी.टी.कपास पहले ही बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा जैव-यांत्रिक तकनीक द्वारा बीज सम्प्रभुता को नष्ट करते हुए हमारे बीजों को अपने अधिकार में करकेउन पर अवैध रूप से लगान वसूल कर देश की अर्थव्यवस्था में सेंध लगाने का कुचक रच है।

जी.एम.-सरसों का व्यावसायीकरण होउससे पहले भारतीय सम्प्रभुताकिसानों के अधिकार और  नागरिकों के अधिकार को सुरक्षित किया जाना चाहिए-

·पेंटल द्वारा बार्नेज/बारस्टर/बार जीन के पेटेंट से सम्बधित बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ किये गए समझौतों को सार्वजनजिक किया जाए।

·पेंटल द्वारा जी.एम.-सरसों के व्यावसायीकरण से सम्बधित सभी संस्थाओं या बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ किये गए समझौतों को जनता के संज्ञान में लाया जाए।

·जी.एम.-सरसों को लाने से पहल सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर विश्लेषण किये जाएं।

·पर्यावरण एवं वन-मंत्रालय जी.एम. प्रजातियों का स्वास्थ्यपर्यावरणसमाज और संस्कृति पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन को बेहतरी से बता सकता है। जी.एम. कपास को लेकर हमारा अनुभव कैसा रहायह बात भी सार्वजनिक होनी चाहिए।

·भारत आयुर्वेद की धरती हैं। विश्व-पटल पर जीवन से सम्बंधित हमारे परम्परागत ज्ञान व विज्ञान की अलग ही प्रतिष्ठिा है। हमें जी.एम. को लेकर स्वतंत्र रूप से आयुर्वेदिक मुल्यांकन कराना चाहिए। आयुर्वेदिक सिद्धांतांे के अनुसार सरसों के पौधे से मात्र तेल ही प्राप्त नहीं होताबल्कि इसकी पत्तियां भोजन हेतु उपयोग में ली जाती हैं और इसके बीज मसालों के काम भी आते हैं।

·सामाजिक-आर्थिक आंकलन का मुख्य मुद्दा एकाधिकारउत्पादक संघ तथा छोटे किसानों पर प्रभाव है। यहां तक कि बीज पर पेटेंट एक या डेढ़ दशक से ज्यादा मान्य नहीं हैमोनसेंटो भारतीय किसानों से लगातार अवैध लगान वसूल करते हुए उन्हें कर्ज और और आत्महत्या के भंवर में धकेलने पर लगा हुआ है।

·जानबूझकर भारतीय कानून का उलंघन किया जा रहा हैइसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए। बीज भोजन के आधार हैं और उन पर संकट मण्डरा रहा है। हमें आशा है कि आप भारत के प्रधानमंत्री के रूप में बीजों पर मंडरा रहे संकट जोकि  किसी भी राष्ट्रीय आपदा से बढ़कर हैके विरूद्ध शक्त और तत्काल कार्यवाही करेंगे।

हम आपसे निवेदन करते हैंकि आप भारतीय संविधान एवं उसमें निहित कानून पर आ रही आपदा को सुशासन के माध्यम से दूर करें।

भवदीय,

डा. वंदना शिवा

निदेशकरिसर्च फाउंडेशन फाॅर साइंसटेक्नाॅलोजी एण्ड इन्वायरमेंट
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Navdanya means “nine seeds” (symbolizing protection of biological and cultural diversity) and also the “new gift” (for seed as commons, based on the right to save and share seeds In today’s context of biological and ecological destruction, seed savers are the true givers of seed. This gift or “dana” of Navadhanyas (nine seeds) is the ultimate gift – it is a gift of life, of heritage and continuity. Conserving seed is conserving biodiversity, conserving knowledge of the seed and its utilization, conserving culture, conserving sustainability.

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