धरती को बचाने के लिए मनुष्यों का समझौता
चिरायु धरती, ’वसुधैव कुटुम्बकम’
एक हमारी धरती सबकी, मानवता इसका मुल्यांकन

पृथ्वी से ही हमारा जीवन है। भले ही सरकार काॅर्पोरेट जगत के दवाब में आकर अपना कर्तव्य भूल जाए, लेकिन मानव होने के नाते हम ऐसा नहीं कर सकते।


इतिहास में पहली बार मानव प्रजाति का भविष्य अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। जीवाश्म ईंधन के पिछले 200 वर्षों से मानव समाज ने धरती को बहुत घायल कर दिया है। यही स्थिति बनी रही तो इस सृष्टि से मानव प्रजाति और उसकी संस्कृति निश्चित ही विलुप्त हो जाएगी। अब प्रकृतिक में संतुलन स्थापित करने हेतु एक मात्र विकल्प यह है कि धरती को दिये गये घावों की भरपाई कर इसकी की आरोग्यता को बढ़ाया जाएं और सृष्टि के इस ग्रह को चिरायु बनाए रखने के लिए हर सम्भव प्रयास किए जाएं। धरती हमारी मां है और उसकी रक्षा में ही हम सबकी भलाई और हमारा भविष्य सुरक्षित है।

1. जैविक मिट्टी में ही हमारी सभ्यता, उसकी सुरक्षा और समृद्धि निवास करती है, अतः हम मिट्टी तथा जैव-विविधता को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 
2. हमारे बीज, हमारी जैव-विविधता, हमारी हवा-पानी-मिट्टी, वातावरण तथा जलवायु जनसाधारण के लिए ही हंै। हम इन तत्वों का किसी भी कीमत पर निजीकरण नहीं होने देंगे। हमें इन जीवन तत्वों की एकजुटता, सहयोग और के आधार पर रक्षा करेंगे।
3. बीज-स्वतंत्रता और जैव-विविधता हमारे भोजन की स्वतंत्रता तथा जलवायु स्थिरता की नीव है। हम इनकी रक्षा करने के लिए एक साथ खडे़ रहेंगे। 
4. औद्योगिक कृषि जलवायु संकट के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। ऐसी खेती से कभी भी भुखमरी और जलवायु परिवर्तन की समस्या का हल नहीं मिल सकता। हम जलवायु परिवर्तन को भू-प्रौद्योगिकी, ’स्मार्ट क्लाइमेट’ एग्रीकल्चर, जैव यांत्रिकी के आधार पर शोधित बीज और सतत सघनता जैसे समाधानों में कभी विश्वास नहीं रखते।
5. हम पारस्थितिकी पर आधारित छोटी जोत की खेती करने के लिए सदैव तत्पर हैं। हम ऐसे स्थानीय भोजन-तंत्र स्थापित करने मंे सहयोग देंगे, जिनसे भोजन और पोषण की प्राप्ति के साथ ही जलवायु संकट का समाधान भी सम्भव हो सके। 
6. मुक्त व्यापार और कॉर्पोरेट जगत की बेलगाम स्वतंत्रता पृथ्वी और मानव स्वतंत्रता के लिए खतरा है। हम कार्पोरेट्स के अधिकारों को बढ़ाने वाले किसी भी समझोते का विराध करते हैं। कार्पोरेट जगत को जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने और पर्यावरण को अत्यधिक मात्रा में प्रदूषण फैलाने के एवज में हर्जाना भरना होगा। 
7. औद्योगिक कृषि का ध्येय मात्र और मात्र उत्पादन और उपभोग करना है, इसीके चलते ऐसे कृषि-तंत्र ने जैव-विविधता का विनाश कर धरती की पारस्थितिक प्रक्रिया में बहुत बड़ी बाधा पहुंची है और लाखों लोगों को खेती-विहीन कर दिया है। हम ऐसे कृत्यों का विरोध करते हैं।
8. हम पृथ्वी तथा उसके प्राणियों के कल्याण हेतु साझेदारी और विविधता में एकता के सिद्धांत को अपना आदर्श मानते हैं। हम परस्पर सहभागिता और स्वस्थ लोकतंत्र में विश्वास करते हैं और अपने लाभ के लिए लोकतंत्र से छेड़खानी का हम प्रबल विरोध करते हैं। 
9. हम धरती और मानवता को बचाने के लिए एक ऐसा समझौता-पत्र प्रस्तुत कर रहे हैं जो पुनः ’वसुधैव कुटुम्बक’ यानी धरती पर लोकतंत्र स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगा। इस तरह से से मनुष्य में सभी प्राणियों के प्रति सद्भावना जगेगी और हमारी धरती चिरायु रहेगी। 
10. हम ’वसुधैव कुटुम्बकम’ (धरती पर लोकतंत्र) को पुनः स्थापित करने और इसमें न्याय, शांति, गरिमा तथा संतुलन बनाए रखने के लिए निरंतर परिवर्तन के बीज बोकर ’आशा के बाग’ लगाएंगे।

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Navdanya means “nine seeds” (symbolizing protection of biological and cultural diversity) and also the “new gift” (for seed as commons, based on the right to save and share seeds In today’s context of biological and ecological destruction, seed savers are the true givers of seed. This gift or “dana” of Navadhanyas (nine seeds) is the ultimate gift – it is a gift of life, of heritage and continuity. Conserving seed is conserving biodiversity, conserving knowledge of the seed and its utilization, conserving culture, conserving sustainability.

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